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मुल्ला नसरुद्दीन और उसकी पत्नी में कुछ खटापटी हो गई, बोलचाल बंद हो गया, जैसा पति—पत्नी में अक्सर हो जाता है। ऐसे तो बोलचाल चलता है, तब भी बंद ही रहता है। लेकिन कभी—कभी बिलकुल ही बंद हो जाता है। मुल्ला की पत्नी को सुबह कहीं जाना था जल्दी, सर्दी के दिन थे। तो वह कैसे पति को कहे? और जब भी बोलचाल बंद होता है, तो पति को ही शुरू करना पड़ता है। पत्नी कभी शुरू नहीं करती। वह स्त्री का स्वभाव नहीं है, पहल करने का, इनीशिएटिव लेने का।
तो पत्नी बड़ी मुश्किल में पड़ी। सर्दी के दिन हैं, सुबह जल्दी उठना है। तो उसने एक कागज पर लिखकर नसरुद्दीन को दिया कि मुल्ला, सुबह पांच बजे मुझे उठा देना। नसरुद्दीन ने चिट्ठी खीसे में रख ली।
सुबह जब पत्नी की नींद खुली, तो वह चकित हुई; सूरज उग चुका था और कोई आठ बज रहे थे। कुछ कह तो सकती नहीं नसरुद्दीन से, क्योंकि बोलचाल बंद है। आस—पास देखा; एक चिट रखी थी उसके बिस्तर पर, कि देवी जी, पांच बज गए हैं, उठिए।
बस, आपका वैराग्य ऐसा कागजी हो सकता है। उससे आप उठेंगे नहीं, सोए ही रहेंगे राग में और वैराग्य की चिट्ठियां आपके आस—पास तैरती रहेंगी। शास्त्र से आया हुआ वैराग्य कागजी होगा।
अपने राग को ठीक से समझें। और यह भी समझें कि यह मेरा संकल्प है। यह मैंने ही तय किया है, चाहे अनंत जन्मों पहले तय किया हो। यह मेरा ही निर्णय है कि मैं शरीर की यात्रा पर जाता हूं; इस संसार के सागर में उतरता हूं; इस संसार के वृक्ष में डूबता हूं; यह मेरा निर्णय है। मैं नियंता हूं। जिस दिन मैं यह निर्णय बदलूंगा, उसी दिन धारा बदल जाएगी। कोई मुझे ले जा नहीं रहा है।
यह हिंदू विचार अनूठा है। कोई मुझे ले जा नहीं रहा है, मैं मालिक हूं; इस गुलामी में भी मैं मालिक हूं। मैं जा रहा हूं यह मेरा बोध उत्पन्न हो सकता है। बुद्ध होने के लिए अनंत जन्मों की जरूरत नहीं है। एक क्षण में भी घटना घट सकती है।
कृष्ण यही अर्जुन को कह रहे हैं कि मेरा ही अंश तेरे भीतर है, सबके भीतर है। उसी अंश ने इंद्रियों को पकडा है। और वही अंश उन इंद्रियों की गंध को ले जाता है नई यात्राओं पर। जिस क्षण तू जान लेगा कि तेरा संकल्प ही तेरी यात्रा है, उस क्षण तू चाहे तो यात्रा रुक सकती है। और अगर तू यात्रा करना चाहे, तो कर सकता है। लेकिन तब यात्रा खेल होगी; तब यात्रा लीला होगी। क्योंकि तू ही कर रहा है; कोई करवा नहीं रहा है। तेरी ही मौज है।
इस संबंध में यह बड़ी क्रांतिकारी बात है। क्योंकि ईसाई सोचते हैं कि ईश्वर ने दंड दिया आदमी को, इसलिए संसार है। अदम ने भूल की, पाप किया, गुनाह किया, तो निष्कासित किया अदम को। मुसलमान भी वैसा ही सोचते हैं। जैन सोचते हैं कि आदमी ने कोई पाप किया, कोई कर्म—बंध किया, उसकी वजह से भटक रहा है। बुद्ध भी ऐसा ही सोचते हैं।
हिंदुओं का सोचना बहुत अनूठा है। हिंदू चेतना यह है कि यह तुम्हारा संकल्प है। न तुम्हारा पाप है, न किसी ने तुम्हें दंड दिया है, न कोई दंड देने वाला बैठा है। और पाप तुम करोगे कैसे? कभी तो तुमने शुरुआत की होगी! कभी तो पहले दिन तुमने किया होगा बिना किसी पिछले कर्म के! आज हो सकता है कि मैं जो कर रहा हूं—पिछले कर्मों के कारण, पिछले जन्म में और पिछले कर्मों के कारण। लेकिन प्रथम क्षण में तो बिना किसी कर्म के मैंने कुछ किया होगा। वह मेरा संकल्प रहा होगा। वह मैंने चाहा होगा।
अगर यह मेरी चाह से ही संसार का वृक्ष है, तो मेरी चाह से ही समाप्त हो जा सकता है। राग संसार में उतरने का संकल्प है, वैराग्य संसार से पार होने का संकल्प है।